Thursday 9 February 2012

MATALABEE

मै  था  तुझमे, तू  थी  मुझ  में  ही  कही
फिर  क्यों  बन  गए,  हालात  मतलबी ...
जो  तेरा  ज़िक्र  नहीं,  तो  मेरी  बात  नहीं
फिर  क्यों  हो  गए,  तुम  यूँ  अजनबी ...
हर  बार  जो  पुकारा,  मैंने  दिलो  जा  से
ढूँढा  दर -ब-दर,  पर  तुम  कही  नहीं ...
जब  है  मतलब  तुझे  बस  मतलब  से
तो  जा ...मुझे  तुझसे  कोई  मतलब  नहीं ...

खूब  बहाने,  खूब  वादे  कर
तुमने  ही,  मुझ  को  लूटा  था ...
एक  आंसू  जो  आखो  से  गिरा कभी ...
तब  देने  को  ज़रा  सी  हिम्मत  भी ...
तूने  कहा  था  जो कुछ  भी उस  रोज़ ...
हर  एक -वो  तेरा  अलफ़ाज़  मतलबी ...
जब  है  मतलब  तुझे  बस  मतलब  से
तो  जा ...मुझे  तुझसे  कोई  मतलब  नहीं ...

आज  जरूरतमंद  हो  कर  जो  देखा
पहचाना  तेरा  वो  मिजाज़  मतलबी ...
बड़े  दिल  से  दिया  था  ये  दिल  तुझको ...
पर  ढूँढा  तूने  बस  मतलब  ही ...
एक  बार  तुझसे  वफ़ा  चाही  तो ...
दिया  बदले  में  बस  मतलब  ही ..
जब  है  मतलब  तुझे  बस  मतलब  से
तो  जा ...मुझे  तुझसे  कोई  मतलब  नहीं ...

हर  बार  बाहों  ने  तुझे  थामा  था ...
हर  बार  समेटा  था  तुझको  ही ...
हर  हाल  में  बस  मै  तेरा  था ...
हर  बार  सहेजा था  तुझको  ही ...
हर  खोने  और  हर  पाने  का ...
निकला  न  ज़रा  सा मतलब  भी ...
जब  है  मतलब  तुझे  बस  मतलब  से
तो  जा ...मुझे  तुझसे  कोई  मतलब  नहीं ...

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